Saturday 8 May 2021

मारकर मुझे ठोकर तुम ढूँढ लो कहीं और सुकून, 
मगर मुझसे बेहतर कहीं नहीं पाओगे तुम। 
तुम्हारे झूठ और धोखों की फेहरिस्त है मेरे पास, 
कोशिश कर लो मगर अपने अतीत से ज़्यादा दूर तलक भाग नहीं पाओगे तुम। 
सच को देख आँखें मूँदी हैं मैंने और तुम्हारे चकमे को सच माना है, 
एक उँगली उठा लो मुझपे, मगर बाकी चार उँगलियों से बच नहीं पाओगे तुम। 
कदम कदम पे दूसरों का सहारा ढूँढते हो तुम, 
जानती हूँ मेरी तरह अकेले ससम्मान जीवन नहीं बिता पाओगे तुम। 
हरगिज़ माफ़ी के काबिल नहीं है कर्म तुम्हारा, 
जब होश में आओगे, इस ज़िंदगी में पूरा प्रायश्चित भी नहीं कर पाओगे तुम। 
अभी भाग लो जितना भागना है मेरी परछाई से भी, 
एक वक़्त आएगा, कोशिश करोगे मगर मेरा दीदार भी नहीं कर पाओगे तुम। 
अपने वज़ूद को इतना हल्का कर चुके हो, 
कि मेरी नज़रों में अपनी कीमत को फिर नहीं उठा पाओगे तुम। 
मेरे पीठ पीछे जो नकली माहौल बना रखा है तुमने, 
मेरे सामने आकर नज़रे मिलाकर स्वीकार नहीं कर पाओगे तुम। 
तुम्हारी खैरियत बनी रहे, ईश्वर से यह प्रार्थना है मेरी, 
मगर मेरी सलामती का ज़िम्मा कभी नहीं उठा पाओगे तुम। 
ये पंक्तियाँ पढ़कर उनका केवल मज़ाक बना सकते हो तुम, 
खेद है मुझे, उनका अर्थ कभी नहीं समझ पाओगे तुम। 
अपूर्वा तिवारी

Monday 3 May 2021

माफ करो हमें हे ईश्वर, 
जानते हैं यह शरीर है नश्वर। 
फिर भी अपने प्रियजनों को जाते देख, है बड़ा दुःख होता, 
दर्द वही समझ पा रहा है, जो है अपनों को खोता। 
प्रकोप प्राकृतिक है, साथ में मानवता भी हो रही है शर्मसार, 
मौत की प्रदर्शिनी से ही इन दिनों भरा है पूरा अखबार। 
साँसों का भी हिसाब रखना होगा, ऐसा कभी सोचा न था, 
बाज़ार बंद रहेंगे और रौनक श्मशानों में होगी, ऐसा नरक कभी भोगा न था। 
हर व्यक्ति चाहता है इस वक़्त दूसरे से मानसिक सहयोग, 
कौन सी दवा संजीवनी है, इसपे अभी भी चल रहा है प्रयोग। 
अपने जीवनकाल में पहली दफ़ा ऐसी विडंबना देख रहे हैं, 
उसमें भी कुछ भल मानुष दूसरों की चिताओं पे अपनी रोटियाँ सेक रहे हैं। 
कौन कब साथ छोड़ कर चला जाए, नहीं है इस बात का ठिकाना, 
हे मनुष्य आपसी बैर त्याग दो, मान कर इसे एक बहाना। 
यथार्थ यही है कि अकेले आये हो अकेले ही है जाना, 
दौलत तुम्हारे बाद यही रह जायेगी, जिसे लूट ले जायेगा ये ज़माना
अपूर्वा तिवारी

Thursday 15 April 2021

जो तुम मुझे समझते तो सरे आम यूँ नुमाईश न होती। 
मैं खुद तुम्हारे पिंजड़े में कैद रहती, जो तुम्हारी ज़ोर आजमाईश न होती। 
अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती तुमपे, जो ऐसा करने की मुझपे तुम्हारी बंदिश न होती। 
मेरी दुनिया तुमसे शुरू और तुमपे खत्म होती, जो तुम्हारी मुझसे पिछले जन्म की रंजिश न होती। 
मैं तो तुम्हारे हाथों का खिलौना होती, जो ऐसी तुम्हारी फरमाईश न होती। 
जो तुम न मुझसे बेवजह भागते होते, तो रिश्ता टूटने की कोई गुंजाईश न होती। 

अपूर्वा तिवारी

Sunday 11 April 2021

ओ दहेज के दानव, अब तेरी आस क्या है
सब कुछ तो सौंप चुकी तुझे अपना, अब बचा मेरे पास क्या है
तू मात्र इक पुरुष है, इसके अलावा तेरी बिसात क्या है। 

मेरे तन मन का तुझे कोई मोल नहीं, उन्हें तू अपने अधिकारों की आड़ में मटिया मेट कर चुका है, 
मेरे धन के लिए इतना पागल है तू, क्या वाकई तेरे अंदर का इंसान मर चुका है। 

दूसरे को बर्बाद करने से पहले ज़रा अपनी बहन बेटियों के बारे में भी इक पल सोच, 
तुम जैसों से बचाने के लिए , गर्भ में ही मार दी जाती हैं लड़कियाँ हर रोज़। 

अपने पाप के घड़े को इतना भी मत छलका कि बाढ़ आ जाए, 
और पैसों की भूख तेरी ही बोटी बोटी खा जाए। 

तूने अपनी सत्ता का दुरूपयोग बहुत किया है कदम कदम पे, 
भुक्तभोगी हूँ मैं तेरी तानाशाही की ,जो आज है चरम पे। 

ताश के पत्तों की तरह तेरे झूठ का महल एक दिन ढे़र हो जायेगा, 
तेरा अहंकार भी हवा में कहीं खो जायेगा। 

उम्मीद करती हूँ मेरे खून के आँसुओं का हिसाब तू ख़ुद एक दिन करेगा, 
भगवान अगर इस धरती पे है, तो वो दिन दूर नहीं, जब तू ख़ुद पश्चाताप की अग्नि में जलेगा। 

अपूर्वा तिवारी

Friday 2 April 2021

शायद तुम यही चाहते थे

वो मेरा व्यक्तित्व है जो मैंने दर्शाया,
वो तुम्हारा अस्तित्व है जो तुमने झलकाया,
पर अब लगता है शायद तुम ये चाहते ही थे।

वो मेरा प्यार है जो आज तक कम नहीं हुआ,
वो तुम्हारा तिरस्कार है जो आज तक खत्म नहीं हुआ,
पर अब लगता है शायद तुम ये चाहते ही थे।

वो मेरे लिए आत्मा से आत्मा का मिलन था,
जो तुम्हारे लिए रस्मों रिवाज़ों का अनचाहा बंधन था,
अब लगता है शायद तुम ये चाहते ही थे।

वो हर खुशी मेरी तुम्हारे सांनिध्य से जुड़ी थी,
जो बोझ रूपी गठरी के रूप में तुम्हारे सर पे लदी थी,
पर अब लगता है शायद तुम ये चाहते ही थे।

वो मैं हर दिन तुम्हारे साथ वक़्त बिताने के बहाने खोजती थी,
जो तुम्हारे मनगढंत काम की व्यस्तता कभी खत्म नहीं होती थी,
अब लगता है शायद तुम ये चाहते ही थे।

वो मैं थी जो सच को नज़र अंदाज़ करती रही,
वो मैं थी जो हर बात के लिए खुद को बेवज़ह कोसती रही,
और अब लगता है शायद तुम ये चाहते ही थे।

वो मैं हूँ जो रखूँगी हमेशा तुम्हारी यादों को सहेज,
वो तुम हो जो चाहे तो जोड़ो चाहे तो रखो मुझसे परहेज़,
फिर भी वाकई लगता है शायद तुम ये चाहते ही थे।

अपूर्वा तिवारी

Tuesday 23 March 2021

बेशक

बेशक तेरी मेहफिल में रौनक आज भी होगी
पर मेरी मौजूदगी की बात ही अलग थी

बेशक तेरी वफ़ा के आज भी दीवाने होंगे कई
पर मेरी वफ़ादारी की बात ही अलग थी

बेशक तेरी नाव की दिशा बदल गयी होगी हवा के रूख से
पर मुझ खेवैये की बात ही अलग थी

बेशक तेरा वक़्त बदल गया होगा समय के साथ
पर तेरे मेरे वक़्त की बात ही अलग थी

बेशक ये ज़माना लाज़वाब होगा तेरा
पर मेरे वाले ज़माने की बात ही अलग थी

बेशक बहुतेरे होंगे तुझे समझने वाले तेरे इर्द गिर्द
पर मेरी समझदारी की बात ही अलग थी

बेशक ज़िंदगी गुज़र जायेगी अलग अलग रास्तों पे चलकर भी
पर साथ साथ चलने की बात ही अलग थी

बेशक ये नज़रिया मेरा है हमारे रिश्ते को देखने का
पर तुम्हारा नज़रिया भी काश यही होता तो बात ही अलग थी
अपूर्वा तिवारी


Friday 26 February 2021

Kya bat hai......

 मेरे अल्फाज़ नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 
मेरे जज़्बात नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 
मेरा सब कुछ तो तुम ही थे इक वक्त, 
इस भावना को निष्काम नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

झूठे आरोप लगाकर मेरी गलतियाँ गिनाने में ताउम्र व्यस्त रहे तुम, 
मेरे संस्कार नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

दुश्मन समझकर अपनों के हाथों मेरी घेराबंदी करवाने वाले तुम, 
मेरा अपमान नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

ख़ुद को भगवान समझकर भ्रम में जीने वाले तुम, 
अरे मुझको एक इंसान नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

बेवज़ह मुझपे उंगलियाँ उठाने वाले तुम, 
मेरा सम्मान नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

मुझसे ही जुड़ा है भविष्य तुम्हारा, 
और मुझे ही अपना वर्तमान नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

मैंने तो तुम्हारा हमेशा भला ही चाहा, 
यह अहसास नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

मुझे धराशायी करने की योजना तुम्हारी सौ प्रतिशत गलत थी, 
मेरी असली पहचान नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

आँखें मूँदकर तुमको ही सही माना हमेशा, 
मेरा तुमपे वो अटूट विश्वास नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

सपना जो देखा था साथ में हमने खुशहाल ज़िंदगी का, 
वो ख़्वाब नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

मुझे परेशान करने की नियत देखी मैंने तुम्हारी, 
पर मेरा मौन विलाप नहीं तुम समझे, 
तो क्या बात है। 

अपूर्वा तिवारी
Mere alfaaz nahi tum smjhe

To kya bat hai.... 

Mere jazbat nahi tum samjhe

To kya bat hai.... 

Mere sabkuch to tum hi the ek waqt, 

Is bhavna ko nishkam nahi tum smjhe, 

To kya bat hai.... 

Jhuthe arop lagakar Meri galtiya ginane me ta-umra vyast rahe tum, 

Mere sanskar nahi tum samjhe, 

To kya bat hai.... 

Dushman samajhkar apno ke hatho meri gherabandi karvane vale tum, 

Mera apman ni tum samjhe, 

To kya bat hai..... 

Khud ko bhagwan samajhkar bhram me jine vale tum, 

Ary Mujhko ek insan nahi tum samjhe, 

To kya bat hai..... 

Bevajah mujhpe ungaliyaan uthane vale tum, 

Mera samman nahi tum smjhe, 

To kya bat hai..... 

Mujhse hi juda hai bhavishya tumhara, 

Aur mujhe hi apna vartman nahi tum smjhe, 

To kya bat hai...... 

Maine to tumhara hmesha bhala hi chaha, 

Yeh ahsas nahi tum smjhe, 

To kya bat hai..... 

Mujhe dharashayi karne ki yojana Tumhari sau pratishat galat thi, 

Meri asli pehchan nahi tum smjhe, 

To kya bat hai..... 

Ankhe moondkar tumhe hi sahi mana hmesha, 

Mera tumpe vishwas nahi tum smjhe, 

To kya bat hai.... 

Sapna jo dekha tha sath me hamne khushhal zindagi ka, 

Vo khwab nahi tum smjhe, 

To kya bat hai.... 

Mujhe pareshan karne ki niyat dekhi maine tumhari, 

Per mera maun vilap nahi tum smjhe, 

To kya bat hai....